घणोई पुराणों
रिश्तो है
रिश्तो है
रसोई रे सागे
ऊँखल अर मुसळ को
एक लम्बो
इतिहास है
मिनखा रो
कूटणे - खाणे रो
इतिहास है
मिनखा रो
कूटणे - खाणे रो
घर री धिराणी
कूटती धान
पाळती परवार ने
कूटती धान
पाळती परवार ने
घाळती
खीचड़ो अर राबड़ी
खीचड़ो अर राबड़ी
घर रे टाबरा ने
पण आज
ऊँखल-मुसळ खूंणा में
पड्यो रेव एकलो
ऊँखल-मुसळ खूंणा में
पड्यो रेव एकलो
जियां घर रो
डोकरो पोली माथे
डोकरो पोली माथे
पड्यो रेव एकळो
मसीना री घङघड़ा हट मांय
घंटा रो काम मिंटा मांय
हुण लागग्यो
हुण लागग्यो
पण ऊँखल-मुसळ
रो स्वाद छिट कर
रो स्वाद छिट कर
दूर भागग्यो
ओ पुरखो है
मिनखारों
मिनखारों
ब्याव सावा में
आज भी पूजीजै है
आज भी पूजीजै है
बुड्ढा बड़ेरा रै जियां
हल्दी चावल
रो तिलक काढणे
रो तिलक काढणे
आज भी लगावे है
कुमकुम रा छींटा
कुमकुम रा छींटा
जणा जार
पूरी हुवे है
ब्याव री रीतां।
पूरी हुवे है
ब्याव री रीतां।
कोलकाता
२४ नवम्बर, २०११
२४ नवम्बर, २०११
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में है )