केदारनाथ मंदिर
उतराखण्ड का प्राचीन धाम
करोड़ों हिन्दुओं की श्रद्धा का केंद्र
जहाँ सुनाई दे रही है
सदियों से आस्था की गूंज
जहाँ सुनाई दे रही है
सदियों से आस्था की गूंज
वही मंदिर आज
खण्डहर बना खडा है
न पुजा,न पाठ न आरती, न भोग
भांय-भांय करता
सिर्फ और सिर्फ सन्नाटा
सिर्फ और सिर्फ सन्नाटा
शिव मूक है
गंगा कर रही है तांडव
इंद्र देवता का रौद्र रूप देख
मन्दाकिनी ने भी
धारण कर लिया है विकराल रूप
चारों तरफ
बिखरी पड़ी है लाशें
कहीं पत्थरों में दबी हुयी है
तो कहीं मलबे में फंसी हुयी
अकाश में मंडरा रहे है सैंकड़ों गिद्ध
पहाड़ों से
ऐसा जलजला आया कि
तबाही का मंजर पसर गया
प्रकृति के इस भयावह
तांडव को लोग वर्षो याद रखेगें
मिट्टी के सैलाब में
हजारों बह गए
हजारों अपने
अपनों को ढूंढते
रह गए।
हजारों बह गए
हजारों अपने
अपनों को ढूंढते
रह गए।
[ यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गई है। ]
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