Sunday, August 18, 2013

भलाई का काम


आओ बंधु !
घर से बाहर निकलो
कब तक कमरे में बैठे टी. वी.
देखते रहोगे ?

ईश्वर ने हमें
मानव तन दिया है
क्या इस से कोई भलाई का
काम नहीं करोगे ?

देखो कितना सुहाना मौसम है
ठंडी-ठंडी बयार चल रही है
आओ निकलो बाहर
आज कोई अच्छा काम कर आएं

किसी रोते हुए बच्चे को हंसाएं
किसी भूखे को दो रोटी खिलाएं
और नहीं तो किसी बीमार को
थोड़ी दवा ही पीला आएं

देखो ! दुःखो का अंत तो
एक दिन सभी का होना है
हर अँधेरी रात के बाद
सूर्य को निकलना है

हमें तो इश्वर ने एक मौका दिया है
क्यों नहीं हम उसका लाभ उठाये
हमें तो करना भी  उतना ही है
जितना सामर्थ्य से होता है

आओ निकलो बाहर
चलो मेरे साथ
करते है आज मिल कर
एक भलाई का काम।



 [ यह कविता "कुछ अनकही***" में प्रकाशित हो गई है। ]







5 comments:



  1. आओ बाहर निकलो
    मेरे साथ चलो
    करके आते है
    आज एक भलाई का काम !

    चलिए जी , चलते हैं !!
    :)

    आदरणीय भाईजी भागीरथ जी
    मानवता के भावों से भरी सुंदर रचना के लिए साधुवाद !

    हार्दिक मंगलकामनाओं सहित...
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete
  2. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  3. हर शरीर के साथ एक
    निराकार इश्वर रहता है
    यह उसी की लीला है
    हमे तो केवल मौका मिला है
    सच कहा यह जीवन एक अवसर ही तो है अच्छा काम करने के लिए !
    बहुत सुन्दर रचना … आभार !

    ReplyDelete
  4. बहुत-बहुत धन्यवाद सुमनजी आपका.

    ReplyDelete