Thursday, March 20, 2014

फागण आयो (राजस्थानी कविता)

फागण आयो रै
साथीड़ा थारी याद सतावै रै
फागण आयो रै

गळी -गळी में फाग टोलियाँ
हिलमिल होली गावै रै
अवधपुरी में दशरथ नंदन
रंग बरसावै रै, फागण आयो रै

हो हो फागण आयो रै
साथीड़ा थारी याद सतावै रै
फागण आयो रै

गळियाँ मांय गुलाल उड़त है
सज गयी मथुरा नगरी रै 
कान्हा के संग फाग खैलबा
राधा आई रै, फागण आयो रै

हो हो फागण आयो रै
साथीड़ा थारी याद सतावै रै
फागण आयो रै

झर-झर बरसे रंग केसरी
बरसाणे-नंदगांव रै
छप्पन भोग छके मनमोहन
खूब लूंटावै रै, फागण आयो रै

हो हो फागण आयो रै
साथीड़ा थारी याद सतावै रै
फागण आयो रै

बरसाणैं री गुजरया ओ
नंदगांव रा ग्वाल रे
नाचै गावै झूमै सारा
रंग बरसावै रै, फागण आयो रै

हो हो फागण आयो रै
साथीड़ा थारी याद सतावै रै
फागण आयो रै

ग्वाल-बाल संग कृष्ण कन्हैया
हिलमिल रास रचावै  रै
ढोल-मृदंग मजीरा बाजै
करै ठिठोली रै, फागण आयो रै

हो हो फागण आयो रै
साथीड़ा थारी याद सतावै रै
फागण आयो रै।



[ यह कविता  "एक नया सफर " में प्रकाशित हो गई है। ]







Thursday, March 13, 2014

रिश्ते यूँ ही बन जाते है

जिंदगी के राहे-सफर में 
रिश्ते यूँ ही बन जाते हैं 

अजनबी भी कभी-कभी 
अपने बन जाते है 

फ्रांसिस स्टुवर्ड ने इस को 
सच कर दिखाया 

अमेरका में सुशीला से 
बहन का रिश्ता बनाया 

पंडित नेहरु ने
फ्रांसिस की दादी को दिया था 
एक अनुपम उपहार#

दादी ने वर्षो संजोकर रखा 
फिर दिया फ्रांसिस को 
वो उपहार


फ्रांसिस उसको 
भारत ले कर आई 
अपनी मुँह बोली बहन के 
हाथों में थमाई 

परिवार का हर सदस्य 
इस उपहार को पाकर 

गर्व  करेगा 

पंडित नेहरू ने 
अमेरिका में दिया था 
कह कर याद करेगा। 


*******************

* फ्रांसिस स्टुवर्ड (अमेरिका) की रहने वाली है और सुशीला की मुँह बोली बहन बन चुकी है। 
# हाथी दाँत पर नक्काशी कर के बनाई हुई गणेश की आकृति की गले की माला।  


Monday, March 10, 2014

दिल में बसा है गांव

पचास वर्ष बीत गए
छोड़े हुए गांव,
लेकिन आज भी दिल में
बसा हुवा है गांव

उस समय गांव में केवल
बैल गाड़िया चला करती
बहुत दूर कच्ची सडक पर
दो-चार बसे मिलती

 पांच मील दूर जाकर
ईन्तजार करना पड़ता
तभी जा कर कोई
बस में चढ़ पाता

 जब भी मेहमन आता
मौहल्ला खड़ा हो जाता
दूध-दही से घर भर जाता
गांव मिलने पहुँच जाता

शाम पड़े पूरा मोहल्ला
रेडियो सुनने आ जाता
देर रात तक अलाव के पास
खूब बातो का दौर चलता

बेटे-बेटियों के विवाह में
गाँव ख़ुशी में डूब जाता
गांव में बेटी -बहु को
इज्जत से देखा जाता

गणगौर के मेले में
बैलो को दौड़ाया जाता,               
होली में गले मिल कर
प्यार से रंग लगाया जाता

पचास वर्ष बीत गए
छोड़े हुए गांव
लेकिन आज भी दिल में
बसा हुवा है गांव।


[ यह कविता "एक नया सफर " पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]

Sunday, March 9, 2014

तुम्हारे साथ

तुम्हारे साथ
मेरा दिन निकलता है
गुलाब के फूलों की तरह

तुम्हारे साथ
मेरी शाम ढलती है
जुगनुओं  की तरह

तुम्हारा साथ
जीवन की राह में 
चाँद-चांदनी की तरह

तुम्हारा संग
सुख पल्लवित करता 
फूलों की छांव की तरह

तुम्हारे अधरों की 
मुस्कान सुख देती 
सबनम की बूंदो की तरह 

तुम्हारी झील सी
आँखों में मेरा अक्श 
दिखता आईने की तरह

हमारे संग सफ़र की 
यादे दिल में बसी है 
किताबों की तरह।




  [ यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गई है। ]






Monday, March 3, 2014

ऐसा मेरा देश हो

हर बच्चे को शिक्षा मिले,
         हर रोगी को दवा मिले,
               देश से महँगाई मिटे,
                   चहु और खुशहाली हो,
                             ऐसा मेरा देश हो।

हर भूखे को भोजन मिले,
        हर हाथ को काम मिले,
               ऊँच-नीच का भेद मिटे,
                      भ्रष्टाचार का अन्त हो,
                                 ऐसा मेरा देश हो।

हर नारी को सम्मान मिले,
       हर परिवार को घर मिले, 
               बेटी-बेटे का भेद मिटे,
                     दुनिया में सम्मान हो,
                              ऐसा मेरा देश हो।

सब को सच्चा न्याय मिले,
       सब को सुनहरा कल मिले,
               नफ़रत की दीवार मिटे, 
                      राजधर्म का पालन हो, 
                                 ऐसा मेरा देश हो।

वृद्धजनों को आदर मिले,
       सब धर्मों को मान मिले,
              घृणा-द्वेष का भाव मिटे,
                       छुआछूत का अन्त हो, 
                                  ऐसा मेरा देश हो। 



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )


Sunday, March 2, 2014

होली हाइकु

होली का रंग
बिखरा चहुँ ओर 
बेबस मन। 

धरा फागुनी 
झूम रही टोलियाँ 
रंग बरसे । 

फागुनी हवा 
पगलाई कोयल 
तराने गाये। 

फागुन आया 
भीगे कंचन अंग 
मन हर्षाया। 

चाँदनी रात 
फागुन की तरंग 
आ साथ चल। 

गोकुल दंग 
राधा किसन संग 
रास रचाये।  

पीया मानेना 
करके बरजोरी 
अंग लगाए।

लगाओ आज
प्यार का गुलाल
मलमल के। 



[ यह कविता "एक नया सफर " पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]

Saturday, March 1, 2014

बसंत हाइकु

बसंत आया
छा रहा कलियों में
प्यार का नशा।

चली बयार
झरने लगे पुष्प
दिन गुलाबी।

बसंत रंग
बजे मन मृदंग
सदा अनूठा।

गुलाबी फिजा
रिमझिम के गीत
गायें भंवरे।

रंग बसन्ती
छाया धरती पर
सृजन खिला।

खेतो में अब
गदराई सरसों
मन मगन।

आया बसंत
उड़ने लगा मन
पिया अनाड़ी।

कोयल कूके
बसंती उपवन
नाचै मयूर।

बौराये आम
मदमस्त महुआ
दहका टेसू।

दिन बसंती
तन मन गुलाबी
हंसी फागुनी।

पीली सरसों
रंग बिरंगे फूल
झूमा बसंत।


  [ यह कविता "कुछ अनकही***" में प्रकाशित हो गई है। ]