होली का रंग
बिखरा चहुँ ओर
बेबस मन।
धरा फागुनी
झूम रही टोलियाँ
रंग बरसे ।
फागुनी हवा
पगलाई कोयल
तराने गाये।
फागुन आया
भीगे कंचन अंग
मन हर्षाया।
चाँदनी रात
फागुन की तरंग
आ साथ चल।
गोकुल दंग
राधा किसन संग
रास रचाये।
पीया मानेना
करके बरजोरी
अंग लगाए।
लगाओ आज
प्यार का गुलाल
मलमल के।
लगाओ आज
प्यार का गुलाल
मलमल के।
[ यह कविता "एक नया सफर " पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]
वहह अतिसुन्दर हैकुज़ ,,
ReplyDeleteधन्यवाद सुनीता जी।
ReplyDelete