आभा उड़ती कुरजा सागै
तू भेजती संदेशो
काळजै री कोरां मांय थारै
झबकती ओळूं'री बिजलियाँ
वा मोत्यां मूंघी मूळक कठै गई
म्हारी काळजा री कौर कठै गई।
मेड़ी चढ़ हरख अर उमाव सूं उडीकती
दरवाजै री औट स्यूं गैळ मांय झाँकती
म्हनै देख'र हरख पळकतो
थारै हाथा री चूड़ियाँ री झणकार में
वा हरख-उमाव आज कठै गई
म्हारी काळजा री कौर कठै गई।
डागळा सूं तू उड़ावंती काला काग
हैत भरिया हीयै स्यूं गांवती अमीणा गीत
आखी रैंण करती हर'रा बिड़द बखाण
दीवळा रै च्यानण लिखती हैत'रा संदेसा
वा हैत-प्रीत री डोर आज कठै गई
म्हारी काळजा री कौर कठै गई।
[ यह कविता "कुछ अनकही ***" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है ]