जीना तो अब केवल एक मज़बूरी रह गई
प्यार भरे दिन तो तुम्हारे संग ही चले गए।
मोहब्बतें - इजहार तो तुम्हारे संग ही चले गए।
बेपनाह बातें और मुलाकाते, यादें बन रह गई
रूप,रस,गंध,स्पर्श तो तुम्हारे संग ही चले गए।
अब तो केवल यादों के संग गुजर रही है जिंदगी
बेपनाह बातें और मुलाकाते, यादें बन रह गई
रूप,रस,गंध,स्पर्श तो तुम्हारे संग ही चले गए।
चापल्य और उन्माद तो तुम्हारे संग ही चले गए।
अब तो रातों में सुख की नींद भी नहीं आती
अब तो रातों में सुख की नींद भी नहीं आती
तन्हाई के दर्द को सहने मैं अकेला रह गया
जीवन के सुख -चैन तो तुम्हारे संग ही चले गए।
[ यह कविता "कुछ अनकही ***" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है ]
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