भू-गर्भ में चट्टाने खिसक गई
धरती ऊपर तक थरथरा गई
हजारों जिंदगी को लील गया
देखो कैसा भूकम्प आ गया।
ऐतिहासिक धरोहरें ढह गई
धड़कनें सभी की थम गई
घरों को मिट्टी में मिला गया
देखो कैसा भूकम्प आ गया।
विनाश का चक्र घूम गया
विश्व आपदा से दहल गया
लाखों को कंगाल बना गया
देखो कैसा भूकम्प आ गया।
प्रकृति का गुस्सा बोल गया
तबाही की ईबारत लिख गया
पर्यावरण बचाओ बता गया
देखो कैसा भूकम्प आ गया।
धरती ऊपर तक थरथरा गई
हजारों जिंदगी को लील गया
देखो कैसा भूकम्प आ गया।
ऐतिहासिक धरोहरें ढह गई
धड़कनें सभी की थम गई
घरों को मिट्टी में मिला गया
देखो कैसा भूकम्प आ गया।
विनाश का चक्र घूम गया
विश्व आपदा से दहल गया
लाखों को कंगाल बना गया
देखो कैसा भूकम्प आ गया।
प्रकृति का गुस्सा बोल गया
तबाही की ईबारत लिख गया
पर्यावरण बचाओ बता गया
देखो कैसा भूकम्प आ गया।
( यह कविता स्मृति मेघ में प्रकाशित हो गई है। )
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