तुम्हारे बिना
गुजर गया एक साल
यह एक साल मुझे कईं
सदियों से भी बड़ा लगा
यदि मैं तुम्हें कहूँ कि
मेरा एक-एक दिन
पहाड़ जैसा गुजरा
तो भी तुम इसे पुरे सच का
एक हिस्सा भर समझना
पूरा सच तो
मैं ही जानता हूँ कि कैसे
गुजरा है मेरा एक साल
तुम्हारे बिना
बहुत गहराई से
महसूस किया है मैंने
विछोह के दर्द को
इन दिनों में
बार-बार
मन में उमड़ आती है
तुम्हारे साथ बिताए
संग सफर की यादें
भटकता रहता हूँ
तुम्हारी स्मृति के जंगल में
जहाँ मिलने आती है
मुझसे तुम्हारी यादें।
[ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]
गुजर गया एक साल
यह एक साल मुझे कईं
सदियों से भी बड़ा लगा
यदि मैं तुम्हें कहूँ कि
मेरा एक-एक दिन
पहाड़ जैसा गुजरा
तो भी तुम इसे पुरे सच का
एक हिस्सा भर समझना
पूरा सच तो
मैं ही जानता हूँ कि कैसे
गुजरा है मेरा एक साल
तुम्हारे बिना
बहुत गहराई से
महसूस किया है मैंने
विछोह के दर्द को
इन दिनों में
बार-बार
मन में उमड़ आती है
तुम्हारे साथ बिताए
संग सफर की यादें
भटकता रहता हूँ
तुम्हारी स्मृति के जंगल में
जहाँ मिलने आती है
मुझसे तुम्हारी यादें।
[ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]
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