जिसकी एक झलक पाने को
मेरी आँखें तरस गई
उसके आते ही आँगन में
प्रीत रेशमी बिखर गई
वो आज सपनें में आई।
मन के सुने अँधियारें में
उसने दीपक राग जलाई
मधुर छुवन की मीठी यादें
उसने आकर के महकाई
उसने आकर के महकाई
वो आज सपनें में आई।
मन मयूर नाचा मेरा
आँखें मेरी भर आई
रात सुहानी कर दी उसने
रजनीगंधा बन आई
वो आज सपनें में आई।
तारे डूबे एक-एक कर
पूरब में लाली छाई
फिर मिलने आउंगी तुमसे
वादा कर वो चली गई
वो आज सपने में आई।
वो आज सपने में आई।
[ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]
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