तुमसे बिछुड़ मेरी प्रीत टूट गई जिन्दगी से
पतझड़ का मौसम छा गया मेरी जिन्दगी में
तुम आओ तो फिर से बसंत खिले ज़िन्दगी में।
सम्भाल रखें हैं मैंने टूटी माला के मनके
तुम आओ तो फिर से सजाए जिन्दगी में।
तुम आओ तो फिर से नेह जगे जिन्दगी में।
पतझड़ का मौसम छा गया मेरी जिन्दगी में
तुम आओ तो फिर से बसंत खिले ज़िन्दगी में।
सम्भाल रखें हैं मैंने टूटी माला के मनके
तुम आओ तो फिर से सजाए जिन्दगी में।
मुझे हर ख़ुशी मिल भी जाए तो क्या होगा
अगर तुम्हारा साथ नहीं मिले जिन्दगी में।
मुझे और कुछ नहीं चाहिए इस जिन्दगी में
अगर तुम्हारा साथ नहीं मिले जिन्दगी में।
मुझे और कुछ नहीं चाहिए इस जिन्दगी में
अगर तुम फिर से हमसफ़र बनो जिन्दगी में।
मेरी ये कविताए बंदनवार है प्रतीक्षा की
तुम आओ तो फिर से रंग भरे जिन्दगी में।
[ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपका आभार कालीपद "प्रसाद" जी।
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