मेज के सामने बैठा
निस्पंद झांक रहा हूँ
मैं अतीत में
मेरे मानस पटल पर
उतरने लगी है
तुम्हारी यादें
उभरने लगी हैं तस्वीरें
बल्कि पूरा का पूरा
परिदृश्य
बालों को गर्दन के पीछे
समेटती तुम खड़ी हो
मेरे पास
तुम्हारे बदन की
संदली सुगंध
फ़ैल रही है कमरे में
अपनी गर्दन पर
महसूस कर रहा हूँ तुम्हारी
साँसों का गुदगुदा स्पर्श
निस्पंद झांक रहा हूँ
मैं अतीत में
मेरे मानस पटल पर
उतरने लगी है
तुम्हारी यादें
उभरने लगी हैं तस्वीरें
बल्कि पूरा का पूरा
परिदृश्य
बालों को गर्दन के पीछे
समेटती तुम खड़ी हो
मेरे पास
तुम्हारे बदन की
संदली सुगंध
फ़ैल रही है कमरे में
अपनी गर्दन पर
महसूस कर रहा हूँ तुम्हारी
साँसों का गुदगुदा स्पर्श
तुम पढ़ रही हो मेरी लिखी
कविता की एक-एक पंक्ति
और कह रही हो
वाह! वाह ! वाह !
सब कुछ
पहले जैसा ही
पहले जैसा ही
स्मरण हो रहा है आज
लेकिन मेरा बढ़ा हाथ
नहीं छू पा रहा है
तुम्हारा गात।
[ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]
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