ओ सावन के कारे मेघा,जाकर देना उसको पाती
बेटे-बहुएँ याद कर रहे, याद कर रही पोती रानी।
बच्चे दादी-दादी करते, बहता नयनों से पानी
बिन दादी के बच्चे, नहीं कर सकते मनमानी।
बिन दादी के बच्चे, नहीं कर सकते मनमानी।
मीठी-मीठी लौरी गाकर, पोती रोज सुलाया करती परियों की बातें बतलाती, बात नहीं है बहुत पुरानी।
दरवाजे पर गुड़ खाने को, आ जाती है धौली-काली
कहना उसको याद कर रही,अंगना की तुलसी रानी।
शाम ढले मंदिर की घण्टी,प्रभु की महिमा जब गाती कहना उसको याद कर रही, घर की दीया ओ बाती।
शाम ढले मंदिर की घण्टी,प्रभु की महिमा जब गाती कहना उसको याद कर रही, घर की दीया ओ बाती।
मेरे सुख-दुःख की तुम,मत करना कोई भी बात
रोते-रोते सूख गया है, अब मेरे नयनों का पानी।
यह कविता "कुछ अनकही ***" में प्रकाशित हो गई है ]
No comments:
Post a Comment