मेरे आस-पास
बरसाने पानी
पिछले तीन दिनों से
नहीं निकल रहा सूरज
भीगी हवाएं जब भी
तन से टकराती है
तुम्हारी कोमल छुअन की
मीठी यादें ताजा कर जाती है
गीली आँखों में
उमड़ पड़ते हैं यादों के बादल
मेरे आँखों के बादल से
तुम भी कहीं भीगती होगी।
[ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]
भीगी-भीगी है सुबह-शाम
बादल आज भी आए हैंबरसाने पानी
पिछले तीन दिनों से
नहीं निकल रहा सूरज
खिड़की पर हल्की धूप
कभी-कभार
टपक पड़ती है भूल से
टपक पड़ती है भूल से
शहर तो वैसा ही है
पहले की तरह
सड़के और गलियाँ
बन गई है ताल-तलैया
बन गई है ताल-तलैया
गाड़ियाँ रेंग रही है सडको पर
भीगी हवाएं जब भी
तन से टकराती है
तुम्हारी कोमल छुअन की
मीठी यादें ताजा कर जाती है
गीली आँखों में
उमड़ पड़ते हैं यादों के बादल
मेरे आँखों के बादल से
तुम भी कहीं भीगती होगी।
[ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]
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