Thursday, April 14, 2016

इन्तजार में

आज
फरीदाबाद वाले घर
गया तो सोचा
तुम सदा की तरह
खड़ी मिलोगी दरवाजे पर
लेकिन तुम नहीं मिली

मैं तुम्हारे कमरे में गया
लेकिन तुम वहाँ भी नहीं मिली
खाली मन कमरे-दर-कमरे
ढूंढता रहा तुम्हें

मन में लगता रहा कि
तुम किसी न किसी कमरे से
अभी निकल आओगी

सामने आकर पूछोगी
कैसे हैं आप ?
और मैं तुम्हारी आवाज की
गहराई में डूबा
तुम्हें निहारता रहूंगा

अब यह मैं नहीं कहूंगा
काश ऐसा होता
वैसा होता।






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