आज
फरीदाबाद वाले घर
गया तो सोचा
तुम सदा की तरह
खड़ी मिलोगी दरवाजे पर
लेकिन तुम नहीं मिली
मैं तुम्हारे कमरे में गया
लेकिन तुम वहाँ भी नहीं मिली
खाली मन कमरे-दर-कमरे
ढूंढता रहा तुम्हें
मन में लगता रहा कि
तुम किसी न किसी कमरे से
अभी निकल आओगी
सामने आकर पूछोगी
कैसे हैं आप ?
और मैं तुम्हारी आवाज की
गहराई में डूबा
तुम्हें निहारता रहूंगा
अब यह मैं नहीं कहूंगा
काश ऐसा होता
वैसा होता।
फरीदाबाद वाले घर
गया तो सोचा
तुम सदा की तरह
खड़ी मिलोगी दरवाजे पर
लेकिन तुम नहीं मिली
मैं तुम्हारे कमरे में गया
लेकिन तुम वहाँ भी नहीं मिली
खाली मन कमरे-दर-कमरे
ढूंढता रहा तुम्हें
मन में लगता रहा कि
तुम किसी न किसी कमरे से
अभी निकल आओगी
सामने आकर पूछोगी
कैसे हैं आप ?
और मैं तुम्हारी आवाज की
गहराई में डूबा
तुम्हें निहारता रहूंगा
अब यह मैं नहीं कहूंगा
काश ऐसा होता
वैसा होता।
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