एक दिन हम
गीता भवन के घाट पर
गंगा में नहाने चलेंगे साथ-साथ
नहाने के बाद
करेंगे पूजा गंगा की और
चलेंगे नाश्ता करने
गीता भवन की
मिठाई की दुकान पर
शाम का खाना हम
चोटिवाले के यहाँ खाएंगे
आइसक्रीम खाने चलेंगे
नौका में बैठ मुनि की रेती
लौटते समय
राम झूला पर खिलाएंगे
चने बंदरों को
आटे की गोलियां डालेंगे
मछलियों को
बालूघाट पर बैठ कर
सुनेंगे कल-कल करती
गंगा की स्वर लहरी को
लौटते समय तुम देना
अपना हाथ मेरे हाथ में
और फिर इठला कर चलना
मेरे संग में।
[ यह कविता "कुछ अनकही ***" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है ]
गीता भवन के घाट पर
गंगा में नहाने चलेंगे साथ-साथ
नहाने के बाद
करेंगे पूजा गंगा की और
चलेंगे नाश्ता करने
गीता भवन की
मिठाई की दुकान पर
शाम का खाना हम
चोटिवाले के यहाँ खाएंगे
आइसक्रीम खाने चलेंगे
नौका में बैठ मुनि की रेती
लौटते समय
राम झूला पर खिलाएंगे
चने बंदरों को
आटे की गोलियां डालेंगे
मछलियों को
बालूघाट पर बैठ कर
सुनेंगे कल-कल करती
गंगा की स्वर लहरी को
लौटते समय तुम देना
अपना हाथ मेरे हाथ में
और फिर इठला कर चलना
मेरे संग में।
[ यह कविता "कुछ अनकही ***" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है ]
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