मधुवन ही वीरान हो गया, तु जो चली गई
अश्क मेरी आँखों से ढलते, तुम जो बिछुड़ गई।
मंजिलें अब जुदा हो गई, अंजानी अब राह हुई जिंदगी अब दर्द बन गई, तुम जो बिछुड़ गई।
खाली-खाली मन रहता, एक उदासी गहरी छाई
यादें अब तड़पाती मुझको, तुम जो बिछुड़ गई।
साथ जियेंगे साथ मरेंगे, हमने कसमें थी खाई
गीत अधूरे रह गए मेरे, तुम जो बिछुड़ गई।
सपने मेरे सपने रह गए,ऑंखें हैं अब भरी-भरी
टूट पड़ा है पहाड़ दुःखों का,तुम जो बिछुड़ गई।
अब मरे संग साथ चले, ऐसा साथी कोई नहीं
जीवन-पथ में रहा अकेला, तुम जो बिछुड़ गई।
किससे मन की बात कहूँ, साथ तुम्हारा रहा नहीं
कैसे अब दिल को बहलाऊँ, तुम जो बिछुड़ गई।
[ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]
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