फ्रेम में जड़ी तुम्हारी
तस्वीर देख कर सोचता हूँ
बह रही होगी मन में
[ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]
तस्वीर देख कर सोचता हूँ
आज भी दमक रही होगी
तुम्हारे भाल पर लाल बिंदिया
कन्धों पर लहरा रहे होंगे
सुनहरे रेशमी बाल
चहरे पर फूट रहा होगा
हँसी का झरना
चमक रही होगी मद भरी आँखें
चमक रही होगी मद भरी आँखें
झेंप रही होगी थोड़ी सी पलकें
देह से फुट रही होगी
संदली सौरभ
बह रही होगी मन में
मिलन की उमंग
बौरा रही होगी प्रीत चितवन
गूंज रहा होगा रोम-रोम में
प्यार का अनहद नाद
मेरे मन में आज भी
थिरकती है तुम्हारी यादें
महसूस करता हूँ
तुम्हारी खुशबु को
तुम्हारे अहसास को।
प्यार का अनहद नाद
मेरे मन में आज भी
थिरकती है तुम्हारी यादें
महसूस करता हूँ
तुम्हारी खुशबु को
तुम्हारे अहसास को।
[ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]
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