मेरी आँख से अब
आँसूं नहीं निकलते
और नहीं दीखता है अब
मेरा उदास चेहरा
इसका अर्थ यह नहीं
कि मेरा विछोह का दर्द
अब कम हो गया है
असल में मैंने अपने
दर्द को ढक लिया है
इसलिए अब वह
अंदर ही अंदर तपता है
रिसता रहता है
देर रात तक आँखों से
गायब हो जाती है
रात की नींद भी आँखों से
कभी लिखूँगा वो सारी बातें
अपनी कविताओं में
जो मैंने सम्भाल रखी है
अपनी धड़कनों में
मेरी जिन्दगी तो अब
रेगिस्तान के उस टीले पर
खड़ी हो गई है जहां
पक्षी भी उड़ान भरने से डरते हैं।
[ यह कविता "कुछ अनकही ***" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है ]
आँसूं नहीं निकलते
और नहीं दीखता है अब
मेरा उदास चेहरा
इसका अर्थ यह नहीं
कि मेरा विछोह का दर्द
अब कम हो गया है
असल में मैंने अपने
दर्द को ढक लिया है
इसलिए अब वह
अंदर ही अंदर तपता है
रिसता रहता है
देर रात तक आँखों से
गायब हो जाती है
रात की नींद भी आँखों से
कभी लिखूँगा वो सारी बातें
अपनी कविताओं में
जो मैंने सम्भाल रखी है
अपनी धड़कनों में
मेरी जिन्दगी तो अब
रेगिस्तान के उस टीले पर
खड़ी हो गई है जहां
पक्षी भी उड़ान भरने से डरते हैं।
[ यह कविता "कुछ अनकही ***" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है ]