मैंने देखा है
चरवाहों को खेजड़ी की
छाँव तले अलगोजों पर
मूमल गाते हुए।
मैंने देखा है
चरवाहों को दूध के साथ
कमर में बंधी रोटी को
खाते हुए।
मैंने देखा है
चरवाहों को भेड़ के
बच्चे को गोद में लेकर
चलते हुए।
मैंने देखा है
चरवाहों को शाम ढले
टिचकारी से ऐवड़ को
हाँकते हुए।
मैंने देखा है
चरवाहों को खेतों में
मस्त एवं स्वच्छंद जीवन
जीते हुए।
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )
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