मैंने तुमको देखा
बुजुर्ग की
लाठी बनते हुए
मैंने तुमको देखा
घायल को
अस्पताल पहुँचाते हुए
अस्पताल पहुँचाते हुए
मैंने तुमको देखा
भूखे को
रोटी खिलाते हुए
मैंने तुमको देखा
रोटी खिलाते हुए
मैंने तुमको देखा
प्यासे को
पानी पिलाते हुए
पानी पिलाते हुए
मैंने तुमको देखा
भटके को
राह दिखाते हुए
मैंने तुमको देखा
रोते का
आँसूं पोंछते हुए
रोते का
आँसूं पोंछते हुए
मैं तुम्हारा नाम
इतिहास के पन्नों में
स्वर्ण अक्षरों में लिखूँगा
ताकि आने वाली पीढ़ी
देख सके
मानव की मनुजता।
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )