प्रेसबी की नर्स "रोज "
मनीष से बातें कर रही थी
बगल मे खड़ा डॉक्टर
काफ़ी देर से सुन रहा था
उसने रोज से पूछा -
क्या तुम इसे जानती हो ?
रोज तपाक से बोली -हाँ
यह मेरा छोटा भाई है
मै थोड़ी ज्यादा गौरी हूँ
ये थोड़ा कम गौरा है
लेकिन मैं भी अब
इसकी तरह होने लग गयी हूँ
थोड़े दिनों में
हम दोनो का रंग
एक जैसा हो जाएगा
फिर तुम नही पूछोगे
और उसी के साथ "रोज"का
चिर परिचित हँसी का
जोरदार ठहाका
जोरदार ठहाका
डॉक्टर झेंप कर हँसने लगा।
[ यह कविता "एक नया सफर " पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]
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