Thursday, July 19, 2018

आज कहाँ हो तुम ?

आज तुम्हें गए
दस दिन हो गए लेकिन
लगता है जैसे कल की बात हो

पंडित ने आज
दस-कातर करवा दिए
कल नारायण बलि भी करा देगा

भेजेगा छींटे
घर का शौक मिटाने
क्या वो छींटे मेरे मन के
शौक को भी मिटा पायेंगे

बारहवें के बाद तो
बंधु-बांधव भी चले जायेंगे
संग रहेगी केवल तुम्हारी यादें

तुम्हारी यादें
 जो अब जीवन भर
आँखों से अश्रु बन बहेगी 

तुम जो मुझे
कभी उदास देखना भी
पसंद नहीं करती थी

आज मेरी आँखों से
अविरल अश्रु धारा बह रही है 
आज कहाँ हो तुम ?



  ( यह कविता "कुछ अनकही ***"में छप गई है। )

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