बचपन में गाँव छोड़
बाहर निकला था
दो पैसा कमाने
कहाँ-कहाँ नहीं भटका
दो पैसे कमाने के
चक्कर में
त्रिपुरा में अगरतला
आसाम में धुबड़ी
बिहार में मुजफ्फरपुर
मेघालय में शिलोंग
हरियाणा में फरीदाबाद
बंगाल में कोलकाता
हजारों मीलों का
सफर किया और
हर प्रान्त में एक नया
व्यापार भी शुरू किया
त्रिपुरा में जूट का
बिहार में तिलहन का
शिलोंग में लकड़ी का
हरियाणा में सेरामिक्स का
कोलकाता में आढ़त का
गाँव से निकला तब सोचा था
ढेर सारा पैसा कमा कर
लौट आऊँगा गाँव
पैसा तो कमाया
मगर नहीं लौट पाया गाँव
गाँव सदा-सदा के लिए
सपना बन कर ही रह गया
मेरे गाँव की गलियाँ तो
आज भी जगती है
मेरे लौट आने के इन्तजार में,
मगर मैं फँस गया
महानगरों के मायाजाल में।
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )
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