प्रभु! करुणा बरसाओ
आवागमन मिटे जीवन से
अब ऐसी भक्ति जगाओ
भवसागर पार लगाओ।
प्रभु! ज्ञानसुधा बरसाओआवागमन मिटे जीवन से
अब ऐसी भक्ति जगाओ
भवसागर पार लगाओ।
मिथ्या मोह मिटे जीवन से
अब ऐसी राह दिखाओ
भवसागर पार लगाओ।
कर्म के पाप कटे जीवन से
अब ऐसी लगन लगाओ
भवसागर पार लगाओ।
प्रभु! प्रेमसुधा बरसाओ
काम-क्रोध मिटे जीवन से
अब ऐसी कृपा बनाओ
भवसागर पार लगाओ।
प्रभु !शांतिसुधा बरसाओ
लोभ-मोह मिटे जीवन से
अब ऐसी कृपा बनाओ
भवसागर पार लगाओ।
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )
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