गांवों से शहर की ओर
पलायन करती
युवा पीढ़ी को हम देखेंगे
कल हम गांव चलेंगे
वर्षा के इन्तजार में
धरती की फटती
देह को हम देखेंगे
कल हम गांव चलेंगे
पनघट को हम देखेंगे
कल हम गांव चलेंगे
अध नंगी देह में
खेतों में काम करते
अन्नदाता को हम देखेंगे
पलायन करती
युवा पीढ़ी को हम देखेंगे
कल हम गांव चलेंगे
वर्षा के इन्तजार में
धरती की फटती
देह को हम देखेंगे
कल हम गांव चलेंगे
निर्जल पड़ी
बावड़ी की सुनी पनघट को हम देखेंगे
कल हम गांव चलेंगे
गांव की गलियों में
भूखे पेट घूमती
गायों को हम देखेंगे
गायों को हम देखेंगे
कल हम गांव चलेंगे
शहर से लौट आने का
इन्तजार करती पथराई
आँखों को हम देखेंगे
कल हम गांव चलेंगे
शहर से लौट आने का
इन्तजार करती पथराई
आँखों को हम देखेंगे
कल हम गांव चलेंगे
अध नंगी देह में
खेतों में काम करते
अन्नदाता को हम देखेंगे
कल हम गांव चलेंगे।
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