बचपन कितना सुन्दर था, ढेरों प्यार जताते थे
बड़े हुए सब भूल गए, आपस में मन को बांटा।
अहंम का ओजार बना कर, भाई ने भाई को बांटा
नहीं किसी ने दर्द को बांटा, केवल सन्नाटे को बांटा।
उसी बाप की नजरों के संग, घर के चूल्हे को बांटा।
आँखें फेरी, लहजा बदला, घर की इज्जत को बांटा
चौखट भी उदास हो गई, घर के आँगन को बांटा।
प्यार - मुहब्बत भाई जैसा, और कहाँ तुम पावोगे
जन्नत है भाई का रिश्ता, जिसको भी तुमने बांटा।
जन्नत है भाई का रिश्ता, जिसको भी तुमने बांटा।
कहना सुनना गृहस्थी में, चलता ही तो रहता है छोटी-छोटी बातों पर, तुमने घर को क्यों बांटा।
धन-दौलत, जमीं-जायदाद, सभी छोड़ कर जाओगे
साथ नहीं जाएगी कोड़ी, फिर क्यों अपनापन बांटा।
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )
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