अस्पतालों का करोड़ों में, बजट बनता है
अस्पताल जाओ तो, मिलती नहीं दवाई है।
स्कूल -कॉलेज चलाना, व्यापर बन गया है
लाखों डोनेशन में लेते, महंगी हुई पढाई है।
कौन समझेगा दर्द, जिनके फटे न बिवाई है।
अब तो चुनावों में, बाहुबल-पैसा चलता है
पैसा खरचो चुनाव जीतो, यही सच्चाई है।
कुर्सी मिलते ही, करोड़ों में बटोरने लगते हैं
क्या करेगा कानून, चोर-चोर मौसेरे भाई हैं।
भ्रस्टनेता देश को लूट, डकार तक नहीं लेते
अच्छा मदारी जो कहता, हाथ की सफाई है।
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )
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