Tuesday, February 4, 2020

सब कुछ सिमट गया

अब माँ दोपहर में
नहीं जाती गपशप करने 
पड़ौस के घर में, 
पड़ोसन चाची भी अब नहीं आती 
माँगने एक कटोरी चीनी 
हमारे घर में। 

अब मेहमान आने पर
पड़ोस के घर से 
दूध भरी बाल्टी नहीं आती, 
माँ भी अब पड़ोस के घर में
जामन माँगने नहीं जाती। 

अब छुटकी, भी
गुड्डे-गुड्डियों की शादी
पड़ोस में नहीं रचाती,
पड़ोसी बच्चे भी अब खेल में
नहीं बनते आकर बराती। 

अब दुःख-सुख की बातें भी 
पड़ोसी के संग नहीं होती,
पड़ोसी के घर की खबर भी 
दूर- दराज से ही मिलती। 

आधुनिकता के दौर में
सब कुछ सिमट गया है, 
मैं और मेरे तक ही
जीवन सीमित रह गया है। 


( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )




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