तुम्हारे और मेरे बीच
पचास साल से
प्रेम और विश्वास का
सम्बन्ध है।
पचास साल से
प्रेम और विश्वास का
सम्बन्ध है।
तुम बोलते हो तो
मैं उसे सुनती हूँ,
तुम्हारी आवाज की चुप्पी
से भी मैं समझ जाती हूँ।
से भी मैं समझ जाती हूँ।
कभी-कभी भ्रमवस
पूछ भी लेती हूँ कि
क्या तुमने मुझे कुछ कहा ?
तुम सुन कर हौले से
मुस्करा देते हो।
पूछ भी लेती हूँ कि
क्या तुमने मुझे कुछ कहा ?
तुम सुन कर हौले से
मुस्करा देते हो।
तुम्हारा चुप रह कर
मुस्कराना भी मुझे
बहुत कुछ कह जाता है।
तुम्हारा संवादहीन होना भी
मेरे लिए एक अर्थ रखता है।
वह है तुम्हारा प्रेम
हमारा प्रेम
हम दोनों का प्रेम।
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )
सच्चे प्रेम को आवाज या किसी भाषा की कोई जरूरत नहीं होती।
ReplyDeleteमस्त रचना है प्रेम रस छलकाती।
धन्यवाद रोहिताश जी।
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