खेत के रास्ते में
पोल्की*तोड़
तुमने एक अंगूठी बना
मुझे पहनाई थी।
वो अंगूठी
आज भी मेरी
अनामिका में हरी है।
तुम्हारे जाने के बाद
मैंने उसे अपने
आंसुओं से सींचा है।
उसकी जड़ें
मेरे दिल तक
चली गई है।
उसकी जड़ों ने
बाँध दिया है
मेरी आत्मा को
जन्म जनमानतार तक
तुम्हारे संग।
*पोल्की एक नरम घास होती है।
पोल्की*तोड़
तुमने एक अंगूठी बना
मुझे पहनाई थी।
वो अंगूठी
आज भी मेरी
अनामिका में हरी है।
तुम्हारे जाने के बाद
मैंने उसे अपने
आंसुओं से सींचा है।
उसकी जड़ें
मेरे दिल तक
चली गई है।
उसकी जड़ों ने
बाँध दिया है
मेरी आत्मा को
जन्म जनमानतार तक
तुम्हारे संग।
*पोल्की एक नरम घास होती है।
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )
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