Sunday, December 30, 2012

सार-सार को गहि रहै


वृद्ध होने के लिए बालो का
सफ़ेद होना जरुरी नहीं है,
मन में निराशा का संचार
होना ही प्रयाप्त है।

जीवन को इस तरह से
जीवो कि हमारा बुढ़ापा
और बच्चों का यौवन
दोनों की गरिमा बनी रहे।

अभिमान और विनम्रता दोनों
का पिता एक है किन्तु माँ दो है
अभिमान की जननी अहं है
विनम्रता की जननी सदाचार है।

रोता तो आसमा भी है
अपनी जमीन के लिए
मगर हम उसे
बरसात समझ लेते है।

पहाड़ो की चोटियाँ भी
पांवों तले आ सकती है,
लेकिन जरुरी है
पहाड़ो के भूगोल से कहीं ज्यादा
हौंसलो का इतिहास पढ़ा जाए।

आजन्म इच्छाऐ मरती नहीं
चाहत बढती जाती है जीने की ....
फिर मोक्ष कैसा। 

अभिमान,
बुद्धि से पहले पैदा होता।

चाँदनी को चाँदनी भी
कह सकते हो
उसे रात कि गोद में सवेरा
भी कह सकते हो।


(मेरी पढ़ी पुस्तको से कुछ वाक्य,जो मेरे दिल को छूने में सक्षम रहे, शायद आप भी पसंद करे।)


सार-सार को गहि लहै












Thursday, December 27, 2012

मानवता बच जायेगी




आकाश के
दिलकश नजारों को
प्रदुषण ने छीन लिया

रातों की
नींद को ट्रकों की
चिल्लपौं ने छीन लिया

फलों का
स्वाद फर्टिलाईजर 
ने छीन लिया

बच्चों  के
बचपन को होमवर्क
ने छीन लिया

परिवार की
  एकता को महंगाई   
 ने छीन लिया

दादी की
कहानियों को टी वी
 ने छीन लिया

पक्षियों के
कलरव को टावरों
ने छीन लिया

आपसी प्यार को
 अहम् की संकीर्णता
 ने छीन लिया

दुनिया के अमन
चैन को आतंकवाद
 ने छीन लिया

देर सवेर सही
 लेकिन एक दिन
यह बात समझ में आयेगी।

जीतनी जल्दी
समझ में आएगी
मानवता बच जायेगी।




  [ यह कविता "कुछ अनकही***" में प्रकाशित हो गई है। ]

Sunday, December 16, 2012

जीवन की कैसी विडम्बना है ?


                              
कहीं सुख का झरना बह रहा है
कहीं दुखों का पहाड़ टूट रहा है
 कोई विजय का जश्न मना रहा है        
 कोई हार का मातम मना रहा है                           
      जीवन की कैसी विडम्बना है ?

 किसी के घर गीत गाये जा रहे है       
किसी के शोक मनाया जा रहा है 
    कोई मँहगी कार में घूम रहा है                  
   कोई नगें पाँव पैदल चल रहा है                   
       जीवन की कैसी विडम्बना है ?   

     किसी का घर जगमगा रहा है                               
  किसी के यहाँ अन्धेरा छा रहा है     
    कोई ऐ.सी. बँगले में सो रहा है   
   कोई फ़ुटपाथ दिन काट रहा है     
       जीवन की कैसी विडम्बना है ?

   कोई फ़ाइव स्टार में खा रहा है   
   कोई जूठन में खाना ढूँढ रहा है     
     कोई सफलता पर झूम रहा है 
     कोई असफलता पर रो रहा है 
        जीवन की कैसी विडम्बना है ?



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )

                                                                       

Friday, November 30, 2012

आयशा



आयशा आज आई आँगन में   
ले अनन्त खुशियाँ जीवन में 
 किलकारी से गूंजा हर कोना    
  चाँद सा मुखड़ा बड़ा सलोना    

   नन्ही परी जब से घर आई 
खुशियाँ दो परिवारो में छाई 
गुनगुन करके वो करती बात   
 फुल सी आयशा बनी सौगात    

नानीजी की गोदी जन्नत बनी  
      नानाजी की मुस्कान खिली      
रुनझुन दादाजी के मन में बसी      
नन्ही कली जैसी पलके खुली   

दादीजी के आँचल में सिमटेगी     
लोरियों की तान में खो जायेगी     
मम्मी- पापा की वो होगी प्यारी     
सब के सपनों की राजदुलारी   

मन की खुशियों को कैसे छुपाऊँ       
 कैसे आयशा  को गोद खिलाऊँ      
गोद खिलाने की चाह बहुत है   
      लेकिन हम तो दूर बहुत है    

सदा प्रभु का आशीर्वाद रहेगा     
खुशियों से भरा जीवन रहेगा   
    चाँद सितारे उम्र लिखेंगे
    गुलसन में अब फुल खिलेंगे।    

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Wednesday, November 21, 2012

मन में बसी है





जीवन के
पैसठवे बसंत में
गांव की यादें आज भी
ताजा  है

पचास साल हो गए
गाँव को छोड़े
लेकिन कल की 
बात लगती है

याद आता है
आज भी गायों का
रम्भाना और बछड़ो का
उछल-कूद मचाना

सज-धज कर पनिहारिनों का
पानी भरने जाना और
पायल का बजना

गडरिये का अलगोजा और
गायों के गले में बन्धी
घंटियों का बजना

सावन की रिमझिम  में
मेहंदी लगे हाथों का
झूले झुलना

गर्मियों में घर आये
मेहमान को छाछ -राबड़ी
पिलाना

गाँव की अनेकों यादें
मन में बसी हैं
मुश्किल है उन्हें भुलाना।



  [ यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गई है। ]




Friday, November 16, 2012

आनन्द और उत्साह





मैं नहीं जानती कि
तुम्हे सुबह के पेपर में
कौन सी खबर चाहिए, 
लेकिन मै जानती हूँ कि
तुम्हे सुबह की चाय में
अदरक जरुर चाहिए।

मैं नहीं जानती कि
देश में बढ़ते घोटाले
कैसे रोके जाने चाहिए,
लेकिन मैं जानती हूँ कि
स्कूल से आने के बाद
बच्चो को क्या चाहिए।

मैं नहीं जानती कि
आरक्षण निति से गरीबो को
कितना लाभ मिलता है,
लेकिन मैं जानती हूँ कि
तुम्हारी माँ को मेरे हाथ का
खाना खाकर आनंद मिलता है।

मैं नहीं जानती कि
बढ़ते राजकोषिये घाटे को
कैसे कम किया जा सकता है,
लेकिन मैं जानती हूँ कि
घर के बजट को कैसे संतुलित
किया जा सकता है।

मैं नही जानती कि अलकायदा 
और तालिबान की धमकी से
अमेरिका की नींद उड़ जाती है,
लेकिन मैं जानती हूँ कि तुम्हारे
बालो में अंगुलियाँ फेरने से
तुम्हे नींद आ जाती है।



  [ यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गई है। ]















Friday, November 2, 2012

सब फलों का राजा आम


अनेक किस्म के होते आम
लंगड़ा  और बनारसी आम
तोतापुरी और हापुस आम
मद्रासी और सेंदुरिया आम। 

                            रस से भरे दशहरी आम 
                           महके बहुत सफेदा आम 
                             आमों  के है हजारों नाम 
                            कौन नहीं जो खाता आम 

कच्चा  सबसे पहले आता
चटनी और अचार बनाता
खुशबू  इनकी प्यारी होती
इनकी शान  निराली होती।

                            चूस-चूस कर  खाते आम
                            शेक बना कर पीते  आम
                            बड़ा स्वादिस्ट होता आम
                            सबको प्यारा लगता आम।

गर्मियों में आता है आम
मीठा और रसीला  आम
हर दिल को भाता  आम
सब फलों का राजा आम।