हिमालय के जंगलों में
घूमते हुए मुझे
एक दिब्य आत्मा
के दर्शन हुए
मैंने उन्हें
प्रणाम करके कहा-
प्रभु !
प्रभु !
आप तो साक्षात
भगवान बुद्ध
लग रहे है
क्या आप मेरी
एक प्रार्थना
सुनेंगे ?
सुनेंगे ?
मेरे इस देश को
भ्रष्टाचार से मुक्त
करेंगे ?
करेंगे ?
दिब्य आत्मा
ने कहा-
वत्सः!
वत्सः!
जाओ
तुम मुझे
एक मुट्ठी चावल
उस घर से ला दो
जिसने आज तक
सच्चाई का जीवन जिया हो
मै इस देश
को सदा-सदा के लिए
भ्रस्टाचार से मुक्त कर दूंगा
काश !
एक मुट्ठी चावल
उस घर से ला दो
जिसने आज तक
सच्चाई का जीवन जिया हो
मै इस देश
को सदा-सदा के लिए
भ्रस्टाचार से मुक्त कर दूंगा
काश !
मै ऐसे किसी ऐसे
एक भी घर को
एक भी घर को
ढूंढ़ पाता
और
अपने देश को
भ्रस्टाचार से मुक्त करा पाता।
कोलकत्ता
२१ सितम्बर, २००९
और
अपने देश को
भ्रस्टाचार से मुक्त करा पाता।
कोलकत्ता
२१ सितम्बर, २००९