तुम से शोभित घर आँगन
तुम से है जीने की चाह
बिना तुम्हारे फिर कैसी
दुनिया में जीने की चाह
हँसते हुए तुम्हे जब देखे
हम सब खुश हो जाते हैं
देख उदास तुम्हारा चेहरा
हम बैचेन हो जाते है
प्रेरणा और शक्ति हो तुम
हम सब की खुशहाली हो
गीता की तुम वाणी हो
गीता की तुम वाणी हो
तुलसी की चौपाई हो
वात्सल्य की मधुर छाँव में
तुमने बांटा सबको प्यार
तुम्हारे आँचल में सिमटा
इस घर का सारा संसार
दीप लिए दोनों हाथों में
सब को राह दिखती हो
सब को राह दिखती हो
आशीषो के शीतल झोंके
तुम लुटाती रहती हो।
[ यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गई है। ]