Thursday, March 28, 2013

होली खेले


नया करे
कुछ इस होली में 
 तन-मन सब रंग जाये

गले लगाए
हर साथी को
राग द्वेष सब मिट जाये 


गीत लिखे
कुछ ऐसा जमकर
सब के मन को भाये


भर दे प्यार
सभी के दिल में  
जीवन उत्सव बनाये 


 सतरंगी
रंगों में घुल कर 
 सबकी साँसों में महके


भेद-भाव
के रंग मिटा कर
मानवता से चहरे चमके


 स्नेह-प्यार
का घट भर कर
सब के संग खेले होली


जैसे कान्हा ने 
वृन्दावन  में   
सखियों संग खेली होली।



[ यह कविता "एक नया सफर " पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]

Thursday, March 21, 2013

अमेरिका में होली






अपने  देश में  खेली  होली।
 मस्ती के संग करी ठिठोली।।
                                          अमेरिका में यह पहली होली।
                                              कैसे  खेले  यहाँ  हम होली।।


बर्फ  रोज  यहाँ  गिरती रहती।
  नहीं खिलते यहाँ रंग बसन्ती।।
                                         कैसे  भीगे यहाँ चुन्दड़  चोली।
                                           कैसे   खेले  यहाँ   हम  होली।।


 फागुन के नहीं  रंग चमकते।
नहीं चंगों के शोर  खड़कते।।
                                           नही चहरो  पर अक्षत  रोली।
                                              कैसे  खेले  यहाँ  हम  होली।।


पिचकारी   की  फुहार नहीं है।
 फागुन  होली  गीत   नहीं है।।
                                           दिल  में  हूक  उठाती  होली।
                                             कैसे  खेले   यहाँ   हम होली।।


मीठी   खुशबु  पकवानों   की।
 गुजिय, मठरी ,दही बड़े की।।
                                              घर  की  याद  कराती   होली।
                                                 कैसे  खेले  यहाँ  हम   होली।।





Tuesday, March 19, 2013

घर वह होता है

घर वह होता है
जहाँ सुबह पाँव छूने पर
बुजर्गो से आशीर्वाद मिले।


घर वह होता है
जहाँ गलतियों पर पिता की
प्यार भरी झिड़की मिले।


घर वह होता है
जहाँ बहु को सास की दुलार
भरी फटकार सुनने को मिले।


घर वह होता है
जहाँ ननद-भाभी की तकरार
और मनुहार सुनने को मिले।


घर वह होता है
जहाँ देवर-भाभी का मीठा
परिहास सुनने को मिले।


घर वह होता है
जहाँ बच्चो की धमा-चौकड़ी
किलकारियाँ सुनने को मिले।


घर वह होता है
जहाँ माँ का बनाया खाना
भाइयों के साथ खाने को मिले।


घर वह होता है
जहाँ देवरानी-जिठानियों  में
बहनों जैसा प्यार देखने को मिले।


घर वह होता है
जहाँ भाई-बहनों का प्यार गंगा
की लहरों की तरह बहता मिले।


मकान तो हमने
बहुत सुन्दर-सुन्दर बना लिए
अब प्रयाश करे एक ऐसा घर मिले।








Sunday, March 17, 2013

बीत गए वो दिन





जब से इन्टरनेट आया 
पुस्तको का अलमारियों से 
निकलना ही बंद हो गया

पुस्तके झांकती रहती है
बंद आलमारियों के शीशों से
जैसे कोई कर्फ्यू लग गया

अब तो कम्पूटर पर
क्लीक किया और जो पढ़ना
वो स्क्रीन पर खुल गया

लेकिन पुस्तकें पढ़ने का 
जो आनन्द था वो आनन्द
कम्पूटर पर कहाँ रह गया

पुस्तकें कभी गोदी में
तो कभी सीने पर रख पढ़ते
नींद आती तो मुहँ ढक सो जाते

पुस्तकें जब किसी के
हाथों से गिरती तो उठा कर 
देने के बहाने रिश्ते बन जाते

पुस्तकों का आदान-प्रदान
  बांधता प्रेम की डोर से
    माँगने के भी बहाने बन जाते

पुस्तकों में निकलते 
 फूल और महकते इत्र के फोहे  
जो दिल की धड़कनों को बढ़ा देते

अब बीत गए वो दिन
सब गुजरे जमाने की
बाते हो गयी 

अब तो पुस्तकें 
केवल अलमारियों की
शोभा बन कर रह गयी।



[ यह कविता "एक नया सफर " पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]




Saturday, March 9, 2013

बचपन लौट आया





चाँद सितारों
ने देखा
अप्सराओं  ने
भी देखा

एक नन्ही परी
  धरती पर उतर आई
मेरे घर की
चौखट जगमगाई

खुशियों की
बहार छाई
परी आयशा बन 
घर में आई

आँखों में तारे
भर लाई
घर में सबका
बचपन लाई

हम लाये 
 उसके लिए खिलौना  
वो बन गयी
 हम सब का खिलौना।



[ यह कविता  "एक नया सफर " में प्रकाशित हो गई है। ]









Friday, March 8, 2013

होली की बहार




  रंगों की डोली !
छलक- छलक
ढलक-ढलक
जाए रे।


 भंग के जाम !
लपक-लपक
गटक-गटक
लड़खडाये रे।


 घुंघरू छनके !
 छमक-छमक  
थिरक-थिरक
ठुमका लगाए रे।


ढप की थाप !
तक धिन-धिन
तान सुनाए
रंग जमाये रे।


  गुलाल !
गालो पर रंग 
आँखों में शरारत
  होली की मस्ती रे।


पिचकारी !
रंग भर मारी 
भीगी चुनरिया 
जी भर खेली रे। 
















Friday, March 1, 2013

अब घर आज्या रे



उमड़-घुमड़ कर
बादल बरसे
बिजली चमके
मन मेरा डोले रे
सजनवा अब घर आज्या रे।

धुप गुनगुनी
भोर लावनी
धरा फागुनी
होली आई रे
सजनवा अब घर आज्या रे।

अमियाँ बौराई
सरसों फूली
महुआ महका 
झूमी वल्लरियाँ रे
सजनवा अब घर आज्या रे।

पायल-बिछियाँ 
पाँव महावर
कमर करधनी 
जिया जलाए रे
सजनवा अब घर आज्या रे।

मन बौराया
तन गदराया
चैत चाँदनी
फगुआई रे
सजनवा अब घर आज्या रे।



 [ यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गई है। ]