Tuesday, October 8, 2013

शहीद की पीड़ा




मै इस देश की
सीमा पर तैनात एक 
अदना सा सिपाही हूँ

देश की
रक्षा करते हुए
आज शहीद हो गया हूँ 

मैंने अभी पुरे नहीं किए
अपने जीवन के
 तीस बसंत भी 

पच्चीस बर्ष में ही
मेरे जीवन का 
हो गया अंत भी 

मै जानता हूँ
मेरे  लिए कोई
शोक सभा नहीं होगी

कोई मौन
नहीं रखा जाएगा
कोई झंडा नहीं झुकेगा 

यहाँ तक कि
मेरे गाँव में मेरा कोई
स्मारक भी नहीं बनेगा

एक सिपाही की मौत से
 किसी को क्या
फर्क पडेगा ?

हाँ ! फर्क पडेगा
मेरे बच्चों को जिनका
मै बाप था

मेरी पत्नी को
जिसका मै पति था 
माँ को जिसका मैं बेटा था

और .....कल के
अखबार के कोने मे 
एक छोटी सी खबर छपेगी

कश्मीर घाटी में
आतंकियों से मुकाबला करते
    तीन सिपाही शहीद। 



[ यह कविता "एक नया सफर " पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]

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