रंग बिरंगी तितलियाँ
आज भी पार्क में
उड़ रही है
गुनगुनी धुप आज भी
पार्क में पेड़ों को
चूम रही है
चूम रही है
फूलों की खुशबु आज
भी हवा को महका
रही है
कोयलियाँ आज भी
आम्र कुंजों में
गीत गए रही है
कोयलियाँ आज भी
आम्र कुंजों में
गीत गए रही है
हवा आज भी
टहनियों की बाँहे पकड़
टहनियों की बाँहे पकड़
रास रचा रही है
लेकिन तुम्हारी
चूड़ियों की खनक आज
सुनाई नहीं पड़ रही है
तुम्हे मेरी कसम
मेरे हमदम
एक बार लौट आओ
अपनी चूड़ियों की
खनक एक बार फिर से
सुना जाओ।
[ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]लेकिन तुम्हारी
चूड़ियों की खनक आज
सुनाई नहीं पड़ रही है
तुम्हे मेरी कसम
मेरे हमदम
एक बार लौट आओ
अपनी चूड़ियों की
खनक एक बार फिर से
सुना जाओ।
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