तुम तो मुझे छोड़ कर
कहीं नहीं जाती
अकेली
फिर आज क्यों
मुझे छोड़ चली गयी
अकेली
मेरे घर पहुँचने तक भी
तुमने नहीं किया
इन्तजार
नहीं दिया तुमने मुझे
दो बात करने का
भी अधिकार
थोड़ी देर रुक जाती
तो तुम्हारा क्या
बिगड़ जाता
तो तुम्हारा क्या
बिगड़ जाता
अलविदा की बेला में
दिल की बात ही
कह लेता
दिल की बात ही
कह लेता
लेकिन तुम तो
मेरे पहुँचने से पहले ही
चली गई
इतने लम्बे सफर में
मुझे छोड़ अकेले ही
निकल गई
मत चली जाना इतनी दूर
कि मेरी आवाज भी
नहीं सुन सको
अपने भरे पुरे परिवार को
फिर से देख भी
फिर से देख भी
नहीं सको
जल्दी लौट आना
मैं अकेले जीवन-पथ पर
नहीं चल पाउँगा
नहीं चल पाउँगा
तुम्हारी जुदाई का दर्द
मैं सहन नहीं कर
पाउँगा।
मैं सहन नहीं कर
पाउँगा।
[ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]
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