Sunday, September 28, 2014

मेरे अधरों पर कोई गीत नहीं है




जब से तुम बिछुड़ी हो मुझसे
मेरे अधरों पर कोई गीत नहीं है।

तुम्हारे स्नेह स्पर्श से  
मेरे मन में प्यार उमड़ आता 
अधरों पर गीत मचल जाता 
अब वो स्नेह स्पर्श नहीं है
मेरे अधरों पर कोई गीत नहीं है।

तुम्हारी मुस्कराहट के संग
मेरा सूर्योदय होता
मन उत्साह-उमंग से भर जाता
अब वो मुस्कान नहीं है
मेरे अधरों पर कोई गीत नहीं है।

तुम्हारी उन्मादक गंध 
मेरे मन में मादकता भरती 
दिल में भावों के फूल खिलाती 
अब वो उन्मादक गंध नहीं है
मेरे अधरों पर कोई गीत नहीं है।

तुम्हारे नयनों का दर्पण 
मेरे मन में चंचलता भरता 
आकुल प्यार मुखर हो उठता 
अब वो नयनों का दर्पण नहीं है
मेरे अधरों पर कोई गीत नहीं है। 

तुम्हारी पायल की झंकार 
मेरे कानों में सरगम घोलती 
एक प्यारी धुन निकल आती 
अब वो पायल की झंकार नहीं है
मेरे अधरों पर कोई गीत नहीं है। 

जब से तुम बिछुड़ी हो मुझसे
मेरे अधरों पर कोई गीत नहीं है।



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )

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