Monday, September 8, 2014

मेरा आभार




जीवन के
लम्बे संग-सफर में
मैं कभी प्रकट नहीं कर सका
तुम्हें अपना आभार 

निश्छल प्रेम
करुणा
शुभ भाव वर्षण 
सब कुछ पाया
लेकिन नहीं कह सका
आभार 

सोचता हूँ 
आज तुम्हे प्रेषित करूँ 
अपना आभार

बादलों को दूत बना
मैं भेज रहा हूँ
तुम्हें अपना आभार

भावांजलि बन मैं
बिखर जाना चाहता हूँ
प्रकट करने तुम्हें
अपना आभार

अपने ह्रदय में
सहेजना मेरे भावों को 
स्वीकार करना
मेरा आभार।

[ यह कविता "कुछ अनकही ***" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है ]






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