म्है तो चावौ हो
थनै सावण-भादौ री
उमट्योड़ी कलायण
दाईं देखबो करूँ
पण तुंतो
बरस'र पाछी
बावड़गी।
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म्हारै माथै भला ही
म्हारै माथै भला ही
चाँद चमकण लागग्यो हुवै
मुण्डा पर भला ही
झुरया पड़नै लागगी हुवै
पण म्हारै हैत में थूं
कोई कमी देखी कांई
जणा बता थूं सावण की
डोकरी दाईं क्यूँ चली गई।
डोकरी दाईं क्यूँ चली गई।
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पून ज्यूँ बालूरा धोरा नै
सजार- संवार चली जावै
बियान ही थूं चली गई
म्हारै जीवण ने सजार- संवार
पण पून तो साँझ ढल्या
ठण्डी हुवारा लैर लैहरका
पाछी आज्यावै
पण थूं पाछी कोनी बावड़ी।
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