नेह भरे थे नयन तुम्हारे
चितवन से मृग भी थे हारे
गीत लिखे थे तुम पर मैंने
अपने स्वर में गाए तुमने
बिना तुम्हारे रह नहीं पाता
अपना दर्द मैं कह नहीं पाता
खुशियां सारी खो गई मेरी
हसरतें अधूरी रह गई मेरी।
[ यह कविता "कुछ अनकही ***" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है ]
चितवन से मृग भी थे हारे
गीत लिखे थे तुम पर मैंने
अपने स्वर में गाए तुमने
जब तक संग तुम्हारा था
जीवन बचपन लगता था
अब तो जीवन संध्या है
कुछ ही दिन का मेला है
जब जब याद तुम्हारी आती
कंठ रुँध, आँखे भर आती
मरुभूमि बन गयी जिंदगी
सपने सी खो गयी बंदगी
कुछ ही दिन का मेला है
जब जब याद तुम्हारी आती
कंठ रुँध, आँखे भर आती
मरुभूमि बन गयी जिंदगी
सपने सी खो गयी बंदगी
बिना तुम्हारे रह नहीं पाता
अपना दर्द मैं कह नहीं पाता
खुशियां सारी खो गई मेरी
हसरतें अधूरी रह गई मेरी।
[ यह कविता "कुछ अनकही ***" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है ]
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