सारी दुनियाँ
जब सो जाती है
तब मैं खो जाता हूँ
सपनों की गोद में
तुम्हारी यादों के संग
पल-पल गुजरती रातों में
मैं जोड़ता रहता हूँ
यादों की लड़ियों को
बचपन में तुम्हारा
दुल्हन बन गांव आना
मेरा कॉलेज में पढ़ कर
छुट्टियों में घर आना
लड़ना-झगड़ना
प्यार मोहब्बत
बच्चों का होना
बहुओं का आना
पोते-पोतियों से
आँगन खिलखिलाना
कितना कुछ जीया हमने
इस जीवन में साथ-साथ
ये यादें
धरोहर है तुम्हारी
और जीवन की नाव को
खेने की अब पूंजी है मेरी।
[ यह कविता "कुछ अनकही ***" में प्रकाशित हो गई है। ]