Friday, October 9, 2015

आयशा रंग भरती है

आयशा रंग भरती है

सूरज-चाँद, हवाई जहाज में
लाकर दिखाती है मुझे
नन्हें हाथों की कला देख
खुश होता हूँ मैं

पकाती है नन्हें बर्तनों में
अदरक वाली चाय
कम चीनी वाली कॉफी
लाकार देती है मुझे
तृप्त होता हूँ मैं

माँ के दुपट्टे की
पहनती है साड़ी
लगा कर घूँघट
दिखाती है मुझे
शर्माता हूँ मैं

सोने को जाते समय
तोतली आवाज में कहती है
नारायण-नारायण
जय श्रीकृष्ण
प्रत्युत्तर में तुतलाने की
कोशिश करता हूँ मैं।


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