मेरी जीवन की बगिया में
कोयल बन कर तुम चहकी,
मेरे जीवन की राहों में
सौरभ बन कर तुम महकी।
मेरा भाग्य संवारा तुमने
बादल बन कर छायां की,
नया सवेरा आया तुमसे
खुशियों की बरसाते की।
मेरे ह्रदय की रानी बन
राज किया तुमने रानी,
मेरे मन मंदिर में बैठी
मेरी सौन्दर्यमयी रमणी।
सोने जैसे दिन थे अपने
चाँदी जैसी प्यारी रातें,
सारी-सारी राते जगकर
करते हम मन की बातें।
कैसे करदु विस्मृत मन से
करुणा-प्रेम रूप तिहारा,
सौ जन्मों का बंधन है यह
जन्म-जन्म का साथ हमारा।
[ यह कविता "कुछ अनकही ***" में प्रकाशित हो गई है। ]
[ यह कविता "कुछ अनकही ***" में प्रकाशित हो गई है। ]
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