मंजिलें अब जुदा हो गई, अंजानी अब राहें हैं
जिंदगी अब दर्द बन गई, तुम जो चली गई।
जीवन मेरा रीता-रीता,ऑंखें हैं अब भरी-भरी
टूट पड़ा है पहाड़ दुःखों का,तुम जो चली गई।
अंत समय पास नहीं था, सदा रहेगा इसका दुःख
दिल में मेरे रह कर भी, बिना मिले तुम चली गई।
[ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]
जिंदगी अब दर्द बन गई, तुम जो चली गई।
साथ जियेंगे साथ मरेगें, हमने कसमें खाई थी
पचास वर्ष के संग-सफर में, तुम जो चली गई।
टूट पड़ा है पहाड़ दुःखों का,तुम जो चली गई।
नहीं काटे कटती है रात, सुख रहा है मेरा गात
अँखियाँ नीर बहाती रहती, तुम जो चली गई।
अंत समय पास नहीं था, सदा रहेगा इसका दुःख
दिल में मेरे रह कर भी, बिना मिले तुम चली गई।
किससे मन की बात कहूँ ,साथ तुम्हारा रहा नहीं
उमड़ पड़ी है दुःख की नदियाँ, तुम जो चली गई।
[ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]
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