Thursday, May 26, 2016

करना पानी में हिल्लोल

गंगा की लहरें
टकरा रही है मेरे पैरों से
चल रही है ठंडी-ठंडी बयार
मन को मोह रहा है लहरों का संगीत

फूलों के डोंगें
तैर रहे हैं लहरों पर
झिमिला रही है दीपक की बाती
बह रही है कल-कल करती गंगा 

दूरागत तीर्थ-यात्री उतर रहे हैं
सम्भल -सम्भल कर
डगमगाती नौकाओं से

खेल रही है मछलियाँ
दौड़ रही है एक दूजे के पीछे
उछलती हुई पानी में

आओ हम भी करे
मछलियों की तरह कल्लोल
तुम भी कूदना छपाक से
करना पानी में हिल्लोल।



[ यह कविता "कुछ अनकही ***" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है ]




Saturday, May 21, 2016

एक चाय की प्याली

बच्चे एक-एक कर
घर से बाहर निकल रहे हैं
अपना भविष्य संवारने
अच्छे कॉलेजों में पढाई करने। 

दो साल हो गए
अभिषेक को वैलोर गए
एक बार मिला था
पिछले दो सालों में। 

पूजा अमेरिका जा रही है
बारहवीं पास कर के
अभी उमर ही क्या है
केवल सत्रह साल। 

गौरव और राधिका को
आज बैंगलोर जा रहें हैं 
कहते हैं वहाँ पढ़ाई अच्छी है। 

सारे बच्चे बिछुड़ रहे हैं
अब वो नहीं खेलेंगे मेरे साथ
नहीं पूछेंगे आकर
मुझ से कोई बात। 

उनकी स्मृतियाँ मन में संजोए
मेरी उँगलियाँ चलती रहेगी 
कंप्यूटर की "की बोर्ड" पर 
आँखें जमी रहेगी स्क्रीन पर। 

कोई चुपचाप आ कर 
रख जाएगा मेरी बगल में
एक चाय की प्याली
या कॉफी का मैग। 



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )

Friday, May 20, 2016

खुशियाँ खो गई खँडहरों में

उजड़ गया मेरा चमन
लूट गयी मेरी बहारें
मुरझा गई प्यार की कली
फूल बन गए अंगारें

मिल गया अनन्त
विछोह का दर्द
साथ रह गया केवल
यादों का अथाह समुद्र

कुछ समय के लिए
आई थी जीवन में बहार
लेकिन अब तो जिन्दगी भर
पतझड़ ही बनेगा कहार

अब सिर उठाने को
न भोर है न सूरज है
और न सिर छिपाने को
शाम है न चाँद है

घसीटता रहूंगा 
जिंदगी के सलीब को 
बना कर सहारा 
तुम्हारी यादों को। 



[ यह कविता "कुछ अनकही ***" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है ]

Thursday, May 19, 2016

अब तुम्हारी याद में

राह सफर में साथी छुटा, अब जीना तन्हाई में  
आँखों से अश्रु जल बहता, अब तुम्हारी याद में।     

 दुःख मेरा क्या बतलाऊँ,दिल रोता है रातों में  
खोया-खोया मन रहता है,अब तुम्हारी याद में।

गर्मी हो या सर्दी हो, क्या बसंत और क्या सावन
हर मौसम लगता है पतझड़, अब तुम्हारी याद में।

एक तुम्हारे प्यार बिना, नीरस फीका यह जीवन
पीली पड़ गई खुशियाँ सारी,अब तुम्हारी याद में।


जब से तुम बिछुड़ी मुझसे, नींद खो गई रातों में 
दिल धड़कता रहता मेरा, अब तुम्हारी याद में।   

मंजिलें अब जुदा हो गई, अंजानी अब राहें हैं
मन रहता है सूना-सूना, अब तुम्हारी याद में।




                                             [ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]


Tuesday, May 17, 2016

अब गीत नहीं लिख पाउँगा

बिना तुम्हारे मेरा मन
बेचैनी से अकुलाएगा
याद तुम्हारी आएगी 
नयन नीर भर जाएगा 
इस जीवन में तुमको मैं
भूल कभी नहीं पाउँगा, अब गीत नहीं लिख पाउँगा। 

संध्या की लाली जब 
दूर क्षितिज पर छाएगी 
चरवाहें घर को लौटेंगे 
सांध्य रागिनी गाएगी 
मैं बैठा चुपचाप सुनूंगा 
साथ नहीं दे पाउँगा, अब गीत नहीं लिख पाउँगा। 

होली के आने की बेला 
शोर मचेगा गलियों में 
धूम मचेगी रंग उड़ेगा 
एक बार फिर आँगन में
याद तुम्हारी साथ लिए 
मैं सपनों में खो जाउँगा,अब गीत नहीं लिख पाउँगा। 

काले-कजरारे बादल 
जब आसमान में छाएंगे 
बरखा बरसेगी चहुँ ओर 
नृत्य मयूर दिखलाएंगे 
तुम से मिलने की चाह लिए
दिल को कैसे समझाऊँगा,अब गीत नहीं लिख पाउँगा। 




                                                    [ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]





Saturday, May 7, 2016

तेरी याद दिलाए रे


फागुन मस्त बयार चली, याद तुम्हारी आए रे
सरसों ने भी ली अंगड़ाई, पोर-पोर महकाए रे।

बाजे ढोल, मृदंग,चंग, आज फिर होली आई रे
   कौन आएगा अब बाहों में,नयन नीर बरसाए रे। 


बिना तुम्हारे कैसे मनाऊं, मैं होली त्यौहार रे                                                                                                    
खो गई मेरी हँसी ठिठोली, कैसे खेलु होली रे।  

सब के संग रंग-पिचकारी, सबके हाथ गुलाल रे 
     मैं किस के संग खेलु होली, मेरी झोली खाली रे।     

याद तुम्हारी मुझको आए, कौन अबीर लगाए रे
बिना तुम्हारे मेरे कपड़े, रह गए कोरे के कोरे रे। 


फागुन आया रंग-रंगीला, मन मेरा अकुलाए रे
  हलवा,गुजिया और मिठाई, तेरी याद दिलाए रे।

पिचकारी संग रंग उड़त है, हाथों उड़े गुलाल रे
हर कोने मैं तुमको ढूंढूं, घर आँगन चौबारा  रे।



[ यह कविता "कुछ अनकही ***" में प्रकाशित हो गई है ]