बिना तुम्हारे मेरा मन
बेचैनी से अकुलाएगा
याद तुम्हारी आएगी
नयन नीर भर जाएगा
इस जीवन में तुमको मैं
भूल कभी नहीं पाउँगा, अब गीत नहीं लिख पाउँगा।
भूल कभी नहीं पाउँगा, अब गीत नहीं लिख पाउँगा।
संध्या की लाली जब
दूर क्षितिज पर छाएगी
चरवाहें घर को लौटेंगे
सांध्य रागिनी गाएगी
मैं बैठा चुपचाप सुनूंगा
साथ नहीं दे पाउँगा, अब गीत नहीं लिख पाउँगा।
होली के आने की बेला
शोर मचेगा गलियों में
धूम मचेगी रंग उड़ेगा
एक बार फिर आँगन में
याद तुम्हारी साथ लिए
याद तुम्हारी साथ लिए
मैं सपनों में खो जाउँगा,अब गीत नहीं लिख पाउँगा।
काले-कजरारे बादल
जब आसमान में छाएंगे
बरखा बरसेगी चहुँ ओर
नृत्य मयूर दिखलाएंगे
तुम से मिलने की चाह लिए
दिल को कैसे समझाऊँगा,अब गीत नहीं लिख पाउँगा।
दिल को कैसे समझाऊँगा,अब गीत नहीं लिख पाउँगा।
[ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]
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