Saturday, May 7, 2016

तेरी याद दिलाए रे


फागुन मस्त बयार चली, याद तुम्हारी आए रे
सरसों ने भी ली अंगड़ाई, पोर-पोर महकाए रे।

बाजे ढोल, मृदंग,चंग, आज फिर होली आई रे
   कौन आएगा अब बाहों में,नयन नीर बरसाए रे। 


बिना तुम्हारे कैसे मनाऊं, मैं होली त्यौहार रे                                                                                                    
खो गई मेरी हँसी ठिठोली, कैसे खेलु होली रे।  

सब के संग रंग-पिचकारी, सबके हाथ गुलाल रे 
     मैं किस के संग खेलु होली, मेरी झोली खाली रे।     

याद तुम्हारी मुझको आए, कौन अबीर लगाए रे
बिना तुम्हारे मेरे कपड़े, रह गए कोरे के कोरे रे। 


फागुन आया रंग-रंगीला, मन मेरा अकुलाए रे
  हलवा,गुजिया और मिठाई, तेरी याद दिलाए रे।

पिचकारी संग रंग उड़त है, हाथों उड़े गुलाल रे
हर कोने मैं तुमको ढूंढूं, घर आँगन चौबारा  रे।



[ यह कविता "कुछ अनकही ***" में प्रकाशित हो गई है ]



3 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 12 मई 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. धन्यवाद आपका।

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  3. धन्यवाद आपका।

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