जब मैं नहीं रहूँगा
तब कोई नहीं आयेगा
मेरा नाम लेकर बुलाने
कि भागीरथ जी
है क्या घर मे ?
जब मैं नहीं रहुँगा
फिर कोई दोस्त
नहीं आएगा
मेरे बारे में पूछने
कभी इस घर में।
जब मैं नहीं रहूँगा
गाँव के लोग पुछेंगे
कहाँ रह गये
हम सब के साथी
क्या छोड़ आये घर में।
जब मैं नहीं रहूँगा
कुछ वर्षों बाद
आगंतुक पूछेंगे
किस की लगी है
यह तस्वीर घर में।
आज कल बस यही माहौल है और यही सोच ... फिर भी सकारात्मक रहें .
ReplyDeleteसंगीता जी सकारात्मक सोच की तो कोई कमी नहीं है, लेकिन कोरोना महामारी ने जो कहर ढाया है, उसको बयां करना भी मुश्किल हो रहा है। देखते-देखते जवान और वृद्ध सभी चले जा रहें है। परिवार अनाथ हो रहें है। कैसे उनको आज ध्येर्य बँधावोगे। बहुत बड़ी संकट की घड़ी आई है।
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